Wednesday 17 April 2024

वो ज़ालिम एक दिन बेनकाब होगा..






चित्रगुप्त के बही से सबका हिसाब होगा,
वो ज़ालिम एक दिन बेनकाब होगा,

आप  हवाई दौरा बाढ़ का करके क्या करोगे
नेताजी आपका वक़्त बेकार खराब होगा,

हमे रोजी और रोजगार में ही उलझा रखो,
पेट भर गया तो मुँह में इंक़लाब होगा,

उसीके साथ दफन हैं जुल्म की सारी सच्चाई ,
पंचनामे में तो वही घिसा- पिटा जवाब होगा,

दिन भर इधर उधर जो मज़लूम को टहलाते रहे,
रामदीन की जेब में बाबूओं के ज़ुल्म का महराब होगा,

Thursday 11 April 2024

अलग-अलग हम कितने अलग है…


 




साथ में तुझमें-मुझमें ही सब है

ज़बक़े अलग-अलग हम कितने अलग है,


सुबह एक ही रंग में रगीं है

शामें सब एक आग़ोश में ढकीं है

एक ही ख़्वाब सजाते है

एक उम्मीद पे जिये जाते है

पसंद नापसंद सब एक हो जाती है

साँसे एक ही धुन गुनगुनातीं है

एक ही रस्क एक ही तलब है

ज़बक़े अलग-अलग हम कितने अलग है


एक परिवेश से तुम आती हो

एक मेरा घर परिवार है

मेरे पापा की नौकरी है

तुम्हारे खानदान का व्यापार है

तुमको चाय में चीनी पसंद है

मैं खाने में नमक कम खाता हूँ

तुम सुबह जल्दी उठती हो

मैं देर से नहाता हूँ

तुम को पुराने नग़मे पसंद है

मैं ग़ज़लें गुनग़ुनाता हूँ

फिर भी जब हम साथ होते है

कितने जुड़े अपने जज्बात होते है

तेरी हर बात पे मेरी 

मेरी हर बात पर तेरी ही झलक है

ज़बक़े अलग-अलग हम कितने अलग है.